ब्याजनिंन्दा अलंकार
काव्य में जहाँ देखने, सुनने में प्रशंसा प्रतीत हो किन्तु वह वास्तव में निंदा हो,वहाँ ब्याजनिंदा अलंकार होता है।
दूसरे शब्दों में - काव्य में जब प्रशंसा के बहाने निंदा किया जाता है , तो वहाँ ब्याजनिंदा अलंकार होता है ।
उदाहरण 1 :-
तुम तो सखा श्यामसुंदर के ,
सकल जोग के ईश ।
स्पष्टीकरण - यहाँ देखने ,सुनने में श्रीकृष्ण के सखा उध्दव की प्रशंसा प्रतीत हो रहा है ,किन्तु वास्तव में उनकी निंदा की जा रही है । अतः यहाँ ब्याजनिंदा अलंकार हुआ ।
उदाहरण 2 :-
समर तेरो भाग्य यह कहा सराहयो जाय ।
पक्षी करि फल आस जो , तुहि सेवत नित आय ।
स्पष्टीकरण - यहाँ पर समर (सेमल ) की प्रशंसा करना प्रतीत हो रहा है किन्तु वास्तव में उसकी निंदा की जा रही है । क्योंकि पक्षियों को सेमल से निराशा ही हाथ लगती है ।
उदाहरण 3 :-
राम साधु तुम साधु सुजाना |
राम मातु भलि मैं पहिचाना ||
Yha barat ki ma raja dasrat se bolti hai ki me apko and apki ptni koslya ko b janti ho yadi ram yha rhega to ap mere bete ko raja gaddi nhi doge
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