व्यतिरेक

व्यतिरेक अलंकार- 

    जब काव्य में उपमान की अपेक्षा उपमेय को बहुत बढ़ा चढ़ा कर वर्णन किया जाता है, वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है। जैसे-

1.  जिनके जस प्रताप के आगे ।
     ससि मलिन रवि सीतल लागे।

2. उसकी मुखड़ा के आगे। 
     कलानिधि फीका लागे।  

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