उत्प्रेक्षा अलंकार-
जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। उत्प्रेक्षा के लक्षण- मनहु, मानो, जनु, जानो, ज्यों,जान आदि। उदाहरण-
1. लता भवन ते प्रकट भे,तेहि अवसर दोउ भाइ।
मनु निकसे जुग विमल विधु, जलद पटल बिलगाइ।।
2. दादुर धुनि चहु दिशा सुहाई।
वेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई।।
3. मेरे जान पौनों सीरी ठौर कौ पकरि कौनों ,
घरी एक बैठि कहूँ घामैं बितवत हैं ।
4. मानो तरु भी झूम रहे हैं, मंद पवन के झोकों से |
5. मनहुँ इन्दु मण्डल बिच अनुपम, मनमध बारिज से।
6. मनहु नील नीरद बिच सुन्दर चारु तड़ित तनु जोहे।
7. लर लटकन मानो मत्त मधुपगन माधुरी मधुर पिए। ( इसमें अनुप्रास अलंकार भी है )
वेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई।।
3. मेरे जान पौनों सीरी ठौर कौ पकरि कौनों ,
घरी एक बैठि कहूँ घामैं बितवत हैं ।
4. मानो तरु भी झूम रहे हैं, मंद पवन के झोकों से |
5. मनहुँ इन्दु मण्डल बिच अनुपम, मनमध बारिज से।
6. मनहु नील नीरद बिच सुन्दर चारु तड़ित तनु जोहे।
7. लर लटकन मानो मत्त मधुपगन माधुरी मधुर पिए। ( इसमें अनुप्रास अलंकार भी है )
Sar inki spashtikaran jarur Diya Karen
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