विरोधाभास

विरोधाभास अलंकार- 

    जहाँ बाहर से विरोध दिखाई दे किन्तु वास्तव में विरोध न हो। जैसे- 

1  ना खुदा ही मिला ना बिसाले सनम।
    ना इधर के रहे ना उधर के रहे।।

2.  जब से है आँख लगी तबसे न आँख लगी।

3.  या अनुरागी चित्त की , गति समझे नहिं कोय।
     ज्यों- ज्यों बूड़े स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होय।।


 4.  सुनहु देव रघुवीर कृपाला । 
       बन्धु न होइ मोर यह काला । 
    
  5.  सरस्वती के भंडार की बड़ी अपूरब बात । 
        ज्यों खरचै त्यों- त्यों बढे , बिन खरचे घट जात ॥ 

6.  शीतल ज्वाला जलती है, ईंधन होता दृग जल का। 
      यह व्यर्थ साँस चल-चलकर , करती है काम अनिल का।. 

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