ब्याजस्तुति

ब्याजस्तुति अलंकार 

 काव्य में जहाँ देखने, सुनने में निंदा प्रतीत हो किन्तु वह वास्तव में प्रशंसा हो,वहाँ ब्याजस्तुति अलंकार होता है।

 दूसरे शब्दों में -  काव्य में जब निंदा के बहाने प्रशंसा किया जाता है , तो वहाँ ब्याजस्तुति  अलंकार होता है । 

उदाहरण 1  :- 

गंगा क्यों टेढ़ी -मेढ़ी चलती हो?
दुष्टों को शिव कर देती हो ।  
क्यों यह बुरा काम करती हो ?
नरक रिक्त कर दिवि भरती हो । 

स्पष्टीकरण - हाँ देखने ,सुनने में गंगा की निंदा प्रतीत हो रहा है किन्तु वास्तव में यहाँ गंगा की प्रशंसा की जा रही है , अतः यहाँ ब्याजस्तुति अलंकार है । 

उदाहरण 2   :- 

रसिक शिरोमणि, छलिया ग्वाला ,
माखनचोर, मुरारी । 
वस्त्र-चोर ,रणछोड़ , हठीला '
मोह रहा गिरधारी । 

स्पष्टीकरण - यहाँ देखने में कृष्ण की निंदा प्रतीत होता है , किन्तु वास्तव में प्रशंसा की जा रही है । अतः यहाँ व्याजस्तुति  अलंकार है । 

उदाहरण 3   :- 

जमुना तुम अविवेकनी, कौन लियो यह ढंग |
पापिन सो जिन बंधु  को, मान करावति भंग ||

स्पष्टीकरण - यहाँ देखने में यमुना की निंदा प्रतीत होता है , किन्तु वास्तव में प्रशंसा की जा रही है । अतः यहाँ व्याजस्तुति  अलंकार है । 

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