दृष्टान्त अलंकार

दृष्टान्त अलंकार 
काव्य में जहाँ  एक ही भाव या आशय की दो बातें कही जाय , वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है।  दृष्टान्त अलंकार में उपमेय और उपमान में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव की समानता पाई जाती है।  इसमें वाचक शब्द का प्रयोग नहीं होता।
उदाहरण 1 
ओछे नर के पेट में रहे न मोटी बात। 
आध सेर के पात्र में कैसे सेर समात।।  
उदाहरण 2 
छमा खड्ग लीने रहै, खल को कहा  बसाय। 
अगिनि परी तृनरहित थल, आपहिं ते बुझि  जाय। 
उदाहरण 3 
कारज धीरे होतु है, काहे होत अधीर। 
समय पाय तरुवर फलै, केतिक सींचौ नीर। 

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