दृष्टान्त अलंकार
काव्य में जहाँ एक ही भाव या आशय की दो बातें कही जाय , वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है। दृष्टान्त अलंकार में उपमेय और उपमान में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव की समानता पाई जाती है। इसमें वाचक शब्द का प्रयोग नहीं होता।
उदाहरण 1
ओछे नर के पेट में रहे न मोटी बात।
आध सेर के पात्र में कैसे सेर समात।।
उदाहरण 2
छमा खड्ग लीने रहै, खल को कहा बसाय।
अगिनि परी तृनरहित थल, आपहिं ते बुझि जाय।।
उदाहरण 3
कारज धीरे होतु है, काहे होत अधीर।
समय पाय तरुवर फलै, केतिक सींचौ नीर।
काव्य में जहाँ एक ही भाव या आशय की दो बातें कही जाय , वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है। दृष्टान्त अलंकार में उपमेय और उपमान में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव की समानता पाई जाती है। इसमें वाचक शब्द का प्रयोग नहीं होता।
उदाहरण 1
ओछे नर के पेट में रहे न मोटी बात।
आध सेर के पात्र में कैसे सेर समात।।
उदाहरण 2
छमा खड्ग लीने रहै, खल को कहा बसाय।
अगिनि परी तृनरहित थल, आपहिं ते बुझि जाय।।
उदाहरण 3
कारज धीरे होतु है, काहे होत अधीर।
समय पाय तरुवर फलै, केतिक सींचौ नीर।
aaj subh dekha hota to mje 4 number mil jate 12 bord me
जवाब देंहटाएंATI VTKRISH SIR
जवाब देंहटाएंBhout sahi sir ji... Thanks
जवाब देंहटाएंGjb sir
जवाब देंहटाएंDhanyawaad
जवाब देंहटाएं